हस्ताक्षरकर्ताओं में: नोम चोमस्की, गायत्री स्पिवक, सुखदेव थोराट, कॉर्नेल वेस्ट, एंजेला डेविस, क्षम सावंत, रामचंद्र गुहा, प्रकाश अंबेडकर, अरुंधति रॉय, आनंद पटवर्धन, रॉबिन डी.जी. केली, जस्टिस कोलसे-पाटिल, पार्थ चटर्जी, अर्जुन अप्पादुरई, अकील बिलग्रामी, राजेश्वरी सुंदर राजन, जस्टिस पी.बी. सावंत, चंद्र तलपड़े मोहंती, सुरिंदर जोधाका, वी. गीता, मनोरंजन मोहंती, दिलीप मेनन, अपर्णा सेन, जोया हसन, शबनम हाशमी, सुदीप्त कविता, अनिया लोमबा, सुवीर कौल, ब्रूस रॉबिन्स, नंदिनी सुंदर, नरेंद्र सुब्रमण्यम, सुब्रमण्यम दयाल, राम पुनियानी, एस। आनंदी, अल्फ गुनवाल्ड निल्सन, शमशुल इस्लाम, सुबीर सिन्हा, गीता कपूर, प्रियंवदा गोपाल, आकाश राठौर, रीति लुकोस, क्रिस्टोफ जाफरलोट, प्रताप भानु मेहता, ऐजाज अहमद, डेविड मोसे, बारबरा हारिसिस जाधव, प्रभात पटनायक, उत्सव पटनायक, नीरा चंडोक, करिन कपाड़िया, एस.वी. राजदुराई, संकल्प मेश्राम, जयरस बानाजी, स्वपन चक्रवर्ती, उमा चक्रवर्ती, आनंद चक्रवर्ती, अनिल सदगोपाल, अमित भादुड़ी, विनय लाल, अमित चौधरी, अचिन वणिक, नीरा चंदोके, जान मिरदल, नंदिता हक्सर, नीरजा जयल और अन्य शामिल हैं।
हम नीचे हस्ताक्षरित व्यक्ति और संगठन प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा की आसन्न गिरफ़्तारी और उनकी छवि को धूमिल करने के प्रयासों की निंदा करते हैं। इन दोनों की गिनती भारत के सबसे प्रमुख नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों में होती है। 26 मार्च, 2020 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. तेलतुंबडे और श्री नवलखा की अग्रिम ज़मानत याचिका ख़ारिज कर
दी। अब उनके पास 6 अप्रैल, 2020 तक पुलिस के सामने ‘समर्पण’ का समय है। हम पूरी शिद्दत के साथ मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के बेंच से कोविड- 19 महामारी के ख़तरे और उससे डॉ. तेलतुंबडे और श्री नवलखा के जीवन को होने वाले नुक़सान का संज्ञान लेने का अनुरोध करते हैं। दोनों वरिष्ठ नागरिक हैं और उन्हें पहले से ही कुछ बीमारियाँ हैं जो उनके जेल जाने पर संक्रमण के सर्वाधिक ख़तरे को पैदा कर देंगी। इस समय उनका बंदी बनाया जाना उनके स्वास्थ्य और जीवन दोनों के लिए ख़तरनाक होगा। हम न्यायिक पदाधिकारियों से अपील करते हैं कि वे कम से कम गिरफ़्तारी के अपने आदेश को इस तरह से बदल दें कि वह इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट के पूरी तरह ख़त्म हो जाने के
बाद लागू हो, जिससे उनके स्वास्थ्य और जीवन को कोई ख़तरा न रहे।
मानवाधिकार वकीलों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, विद्वानों और अध्येताओं पर जारी भारतीय सत्ता के हमले की श्रृंखला में तेलतुंबडे और नवलखा ताज़ा कड़ी हैं। उन पर आतंकियों और राजद्रोहियों पर लागू किए जाने वाले काले औपनिवेशिक क़ानून (यूएपीए) के तहत मुक़दमे दर्ज किए गए हैं, जो बोलने की स्वतंत्रता, अपने विचार रखने के अधिकार या सरकार की हिंसक नीतियों से असहमति जाहिर करने के अधिकार, ज़रूरी न्यायिक प्रक्रिया हासिल करने के अधिकार (पीयूसीएल, पीयूडीआर, डब्ल्यूएसएस, आक्सफैम इंडिया सरीखे नागरिक संगठनों का बयान देखिए) समेत सभी नागरिकों को हासिल मूल अधिकारों का पूरी तरह उल्लंघन करते हैं। उनके मुक़दमे भिमा-कोरेगाँव केस, एक संदिग्ध और बिल्कुल फर्जी केस (अमेरिकी बार एसोसिएशन की रिपोर्ट देखिए, जो अनियमितता और बोलने की आज़ादी के खुले उल्लंघन और इस केस से जुड़े तमाम पहलुओं का दस्तावेजीकरण करती है और हाल की एक जाँच के सबूतों के अनुसार फर्जीवाड़े की तरफ़ इशारा करती है) कहे जाने वाले मामले के तहत आते हैं। जून 2018 से नौ दूसरे प्रमुख बुद्धिजीवियों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं (सुधा भारद्वाज, सुधीर धवले, अरुण फरेरा, सुरेंद्र गाडगिल, वर्ना गोंसाल्विस, वरवर राव, महेश राऊत, शोमा सेन और रोना विल्सन) को इसी फ़र्ज़ी केस (भिमा-कोरेगाँव केस के सलिसिले में विस्तृत न्यूज़ रिपोर्ट के लिए ‘इंडिया सिविल वाच’ देखिए) के तहत जेल में बंद किया गया है। ये 11 लोग भारत के सबसे ज़्यादा सम्मानित कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों में से हैं, जिन्होंने लगातार सामाजिक रूप से हाशिये पर रहने वाले और उत्पीड़ित समूहों, दलित, आदिवासी (देसी जनजातीय समुदायों), मज़दूरों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ी है।
प्रोफ़ेसर तेलतुंबडे एक प्रतिष्ठित विद्वान्, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और भारत के अग्रणी जन-बुद्धिजीवी हैं। उनका जीवन सत्ता के सामने सच बोलने, राज्य द्वारा अपने सबसे कमजोर तबकों दलितों और मजदूरों के उत्पीड़न तथा जाति सरीखी पिछड़ी हुई सांस्कृतिक संस्थाओं का पर्दाफ़ाश करने का लंबा इतिहास है। बहुत सारे लोगों द्वारा सराहे जाने वाले तेलतुंबडे के लेखन ने लोकतंत्र, वैश्वीकरण और सामाजिक न्याय पर होने वाली महत्वपूर्ण बहसों में अप्रतिम योगदान किया है। दलित समुदाय (बहुत समय से उत्पीड़ित अछूत जाति) के एक सदस्य के तौर पर विनम्र शुरुआत करने वाले डॉ. तेलतुंबडे ने अपनी श्रेष्ठ प्रतिभा के साथ भारत के उच्च शिक्षा के अग्रणी संस्थानों से शिक्षा हासिल की। वे भारत की प्रमुख शैक्षणिक संस्था इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) के छात्र रहे हैं और कॉर्पोरेट सेक्टर में भी उनका लंबा और शानदार कैरियर है। वे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और पेट्रो-इंफ़्रास्ट्रक्चर कंपनी पेट्रोनेट इंडिया लिमिटेड (प्राइवेट सेक्टर में भारत सरकार द्वारा समर्थित कंपनी ) के उच्च प्रबंधन में काम कर चुके हैं।
डॉ. तेलतुम्बडे ने कॉर्पोरेट के अपने कार्यकाल के बाद प्रमुख शैक्षणिक संस्थान आईआईटी खड़गपुर में बिज़नेस मैनेजमेंट के प्रोफ़ेसर के तौर पर अध्यापन का काम किया और मौजूदा दौर में वे गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रमुख डेटा एनालिटिक्स के चेयरपर्सन और वरिष्ठ प्रोफ़ेसर पद पर कार्यरत हैं। समकालीन समाज में जाति और वर्ग के गतिशास्त्र तथा डॉ. बीआर अंबेडकर (भारतीय संविधान के सबसे प्रमुख निर्माता और महात्मा गांधी के सबसे महत्वपूर्ण वार्ताकार) की प्रासंगिकता पर उनके विश्लेषण अध्येताओं के लिए बुनियादी संदर्भ हैं और दुनिया के कई विश्वविद्यालयों के ज़रूरी पाठ्यक्रम में शामिल हैं। उन्हें अक्सर अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में बुलाया जाता है और पूरी दुनिया में उनके काम को सम्मान हासिल है।
डॉ. तेलतुंबडे ने लोगों के जीवन में सुधार लाने में अप्रतिम योगदान किया है. वे दुनिया को कुछ अधिक न्यायप्रिय बनाने में अपने बौद्धिक योगदान के लिए समर्पित रहे हैंI इसी संकल्प से वे लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की समिति (सीपीडीआर) बनाने के लिए प्रेरित हुए और फिलहाल उसके महासचिव हैं। इसके साथ ही उन्होंने ऑल इंडिया फ़ोरम फ़ॉर राइट टु एजेुकेशन (एआईएफआरटीई) के गठन की भी पहल की। तेलतुंबडे उसके अध्यक्ष मंडल के सदस्य हैं। जिन संगठनों से वे जुड़े हुए हैं उनमें से कोई भी प्रतिबंधित नहीं है।
गौतम नवलखा एक जाने-माने लोकतांत्रिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार हैं। वे कई साल से पीयूसीएल, दिल्ली के सदस्य हैं और देश की अग्रणी और अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त समाज-विज्ञान पत्रिका ‘इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ (ईपीडब्ल्यू) के सम्पादकीय सलाहकार के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं। इसके साथ ही वे कश्मीर में कार्यरत इंटरनेशनल पीपुल्स ट्रिब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस के संयोजक भी हैं। उनकी किताब ‘डेज़ एंड नाइट्स: इन दि हार्टलैंड ऑफ रेबेलियन’ (पेंग्विन, 2012) छत्तीसगढ़ में माओवादी आंदोलन को समझने के लिए एक बहुत गंभीर कोशिश मानी जाती है।
कुछ सप्ताह पहले जिस तेज़ी के साथ केंद्र सरकार ने तेलतुंबडे और नवलखा के केस को महाराष्ट्र सरकार से लेकर नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) को दिया है, उससे राज्य की मंशा बिल्कुल साफ़ है। प्रमाणों से ऐसा लगता है कि राज्य महज़ भारतीय समाज के सबसे उत्पीड़ित और हाशिये के लोगों के लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों की वकालत करने के लिए उन्हें लंबे समय तक जेल में रखना चाहता है। यह सब कुछ इसके बावजूद हो रहा है कि इन लोगों ने न्याय के लिए संघर्ष के अपने तरीक़ों को हमेशा भारतीय संविधान द्वारा मुहैया कराए गए प्रावधानों और स्वतंत्रताओं के तहत रखा। इनमें से किसी का उस आयोजन, जिससे भिमा-कोरेगाँव प्रकरण हुआ, या उसके बाद घटी घटनाओं से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है।
भारतीय लोकतंत्र पर बहुत समय से नज़र रखने वाले हम लोग राज्य द्वारा बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं के घृणित उत्पीड़न को देखकर अचंभित हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन को सत्ताहीन, कमजोर लोगों की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया है। इनमें से कई लोग भारत में लोकतंत्र के सबसे मज़बूत रक्षकों में शामिल हैं और वह भी ऐसे समय में, जब इस लोकतंत्र पर हो रहे हमलों को पूरी दुनिया देख रही है. यहीं नहीं, डॉ. तेलतुंबडे कॉर्पोरेट लीडर के रूप में एक निर्विवाद शख्सियत, बहुत सक्षम विद्वान और अपार ख्यातिप्राप्त जन- बुद्धिजीवी होने के अलावा भारतीय लोकतंत्र को स्थापित करने वाले अंबडेकर परिवार से आते हैं. उन्हें निशाना बना कर राज्य पूरे देश को यह संदेश दे रहा है कि उसे चुनौती देने या असहमति ज़ाहिर करने का साहस करने वाले लोगों की आवाज़ को दबाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है।
हम डॉ. तेलतुंबडे और श्री नवलखा समेत भिमा-कोरेगाँव मामले में ग़लत आरोपों के तहत फँसाए गए दूसरे लोगों के साथ पूरी एकजुटता और समर्थन ज़ाहिर करते हुए माँग करते हैं कि:
- भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद भारतीय संविधान और भारतीय लोकतंत्र का पालन करते हुए इस मामले में दख़ल देकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ लगे देशद्रोह और आतंकवाद की धाराओं के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट की राय आमंत्रित करें।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) प्राथमिकता के आधार पर इस मामले में तत्काल जाँच गठित करे। इसके तहत उन सबूतों को फ़र्ज़ी तरीक़े से निर्मित किये जाने की जाँच हो, जिनकी मीडिया में व्यापक स्तर पर चर्चा हुई है।
- इस पूरे मामले की स्वतंत्र रूप से जाँच कराने के लिए महाराष्ट्र सरकार और महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग तत्काल स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन करें।
- यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स कमीशन (यूएनएचआरसी) और एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन (एएचआरसी) यूएन स्पेशल रैपरट्वायर में शामिल हों, जिन्होंने साफ़ तौर पर इस केस के आधार को चुनौती दी है।
इस याचिका पर [wpforms_entries_count id=”1009″ number = “99999”] संगठनों और व्यक्तियों ने हस्ताक्षर किये हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम नीचे दिए गए हैं:
- लोकतांत्रिक अधिकार सुरक्षा समिति (CPDR), भारत
- इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल, यूएसए
- भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद, यूएसए
- दलित एकता मंच, यूएसए
- अम्बेडकर किंग स्टडी सर्कल, यूएसए
- नोआम चॉम्स्की, प्रोफेसर एमेरिटस, एमआईटी और लॉरेटे प्रोफेसर, एरिज़ोना विश्वविद्यालय
- अरुंधति रॉय, लेखिका, भारत
- कॉर्नेल वेस्ट, सार्वजनिक दर्शन के अभ्यास के प्रोफेसर, हार्वर्ड
- रॉबिन डी। जी। केली, इतिहास के प्रतिष्ठित प्रोफेसर, यूसीएलए, यूएसए
- पार्थ चटर्जी, सीनियर रिसर्च स्कॉलर, एंथ्रोपोलॉजी कोलंबिया यूनिवर्सिटी, यूएसए
- गायत्री स्पिवक , विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, अंग्रेजी और तुलनात्मक
- साहित्य, कोलंबिया विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका
- एंजेला डेविस, यूसी सांता क्रूज़, यूएसए
- सुखदेव थोराट, प्रोफेसर एमेरिटस, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, जेएनयू, और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और आईसीएसएसआर के पूर्व अध्यक्ष
- क्षमा सावंत, सदस्य, नगर परिषद, सिएटल, WA यूएसए
- आनंद पटवर्धन, फिल्म निर्माता, भारत
- जयति घोष, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, जेएनयू इंडिया
- ज्ञान प्रकाश, इतिहास के प्रोफेसर, प्रिंसटन
- चंद्र तलपड़े मोहंती, प्रतिष्ठित प्रोफेसर, सिरैक्यूज़ विश्वविद्यालय
- अकील बिलग्रामी, कोलंबिया विश्वविद्यालय के दर्शन के प्रोफेसर सिडनी मोर्गनबसेर
- अर्जुन अप्पादुरई, मीडिया, संस्कृति और संचार के पॉलेट गोडार्ड प्रोफेसर, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, यूएसए
- राजेश्वरी सुंदर राजन, वैश्विक प्रतिष्ठित प्रोफेसर, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, यूएसए
- जस्टिस कोलसे-पाटिल, सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
- जस्टिस पी। बी। सावंत, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और प्रेस एसोसिएशन के वर्ल्ड एसोसिएशन के अध्यक्ष
- प्रकाश अंबेडकर, संसद के पूर्व सदस्य (लोकसभा), भारत
- रामचंद्र गुहा, इतिहासकार और अर्थशास्त्री
- वी। गीता, नारीवादी इतिहासकार और लेखक
- प्रोफेसर मनोरंजन मोहंती, दुर्गाबाई देशमुख सामाजिक विकास परिषद, सामाजिक विकास परिषद, नई दिल्ली में और चीनी अध्ययन संस्थान के सह-अध्यक्ष।